Coat ka kissa

कुछ   पांच या छः  साल पहले का किस्सा रहा होगा।  बड़े शौक से मैंने आपने बड़े बेटे के लिए एक कोट ख़रीदा।  स्कूल के स्टेज पर कोई प्रोग्राम था जहां जा कर कुछ बोलना था।  जनाब कोट पैंट पहन कर शीशे के सामने खड़े आपने को घंटो निहारते रहे ,फिर बोले – ” मैं तो बिलकुल पापा जैसा लग रहा हूँ। ” प्रोग्राम वाले दिन कोट ने confidence में चौगुना वृद्धि की और तालियों की गरगराहट से पता चला की कोट अपना कमाल दिखा चूका था।  प्रोग्राम के बाद लगा कर्ण के कवच जैसै इस कोट को शरीर से अलग न करने का फैसला ले लिया गया था।  खैर , अगले दिन तक कोट दोबारा हंगर में लटक कर अलमारी में विलीन हो गये।  हफ्ते गुज़रे ,फिर कुछ महीने और फिर साल पर साल पर कोट पहने का कोई दूसरा मौका ही न आया।  ऐसा  ना  था की कोशिश न की गयी हो ,पर ज्यादा स्मार्ट दिखने और फिर दोस्तों के बीच हसीं का पात्र बनने का जोखिम उठाये भी तो कैसे ? बड़े भाई और कोट की विडंबना का चित्रण देख छोटा भाई अपना फ़रमान सुना चूका था – ” बड़े भाई के सारे पुराने कपडे मैं पहनता हूँ , मुझे पर ये कोट पहनने को ना कहना ,मुझे नहीं दिखना इतना स्मार्ट , सब हॅसेंगे। “

आज भी कोट इंतज़ार ही कर रहा है अपनी बारी  का अलमारी में टंगे हुए।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s